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श्री लम्बोदर स्तोत्रम् (क्रोधासुर कृतम्)

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ध्यान रखें की इस दिन पूजा करते समय कोकिला व्रत कथा का पाठ जरूर करें।

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भगवान शिव को जब सती के बारे में पता चलता है तो वह यज्ञ को नष्ट कर, दक्ष के अहंकार का नाश करते हैं। सती की जिद्द के कारण प्रजापति के check here यज्ञ में शामिल होने तथा उनकी आज्ञा न मानने के कारण वह देवी सती को भी श्राप देते हैं, कि हजारों सालों तक कोयल बनकर नंदन वन में घूमती रहें।

कोकिला व्रत से जुड़ी कथा का संबंध भगवान शिव एवं माता सती से जुड़ा है। माता सती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक कठोर तपस्या को करके उन्हें पाया था। कोकिला व्रत कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार देवी सती ने भगवान को अपने जीवन साथी के रुप में पाया। इस व्रत का प्रारम्भ माता पार्वती के पूर्व जन्म अर्थात सती रुप से है।

ऐसे में जब देवी सती को इस बात का पता चलता है कि उनके पिता दक्ष ने सभी को बुलाया लेकिन अपनी पुत्री को नहीं। तब सती से यह बात सहन न हो पाई। सती ने शिव से आज्ञा मांगी कि वे भी अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहतीं हैं। शिव ने सती से कहा कि बिना बुलाए जाना उचित नहीं होगा, फिर चाहें वह उनके पिता का घर ही क्यों न हो। सती शिव की बात से सहमत नहीं होती हैं और जिद्द करके अपने पिता के यज्ञ में चली जाती हैं।

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यह व्रत भौम दोष से मुक्ति दिलाने में भी सहायक होता है, जो विवाह में बाधा डालता है।

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मान्यताओं के अनुसार, अनंतकाल में एक राजा दक्ष हुए थे जिनकी पुत्री सती ने उनकी इच्छा के विपरीत भोलेनाथ को अपने पति के रूप में चुना था। एक बार अपने घर में यज्ञ का आयोजन करवाया था। इसका निमंत्रण उन्होंने सभी देवी देवताओं को दिया लेकिन देवी सती और भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया था। जब देवी सती को इस यज्ञ का पता चला तो वह भी इस यज्ञ में शामिल होने के लिए भगवान शिव से आग्रह करने लगीं। भगवान शिव ने देवी सती को समझाया कि बिना बुलाए उन्हें यज्ञ में नहीं जाना चाहिए। लेकिन देवी सती ने भगवान शिव की बात ना मानी जिस पर भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी।

ஶ்ரீ க³ணேஶ மூலமந்த்ரபத³மாலா ஸ்தோத்ரம்

इस कारण से इस व्रत को कोकिला व्रत का नाम दिया गया क्योंकि देवी सती ने कोयल बनकर हजारों वर्षों तक वहाँ तप किया। फिर पार्वती के रूप में उत्पन्न हुई और ऋषियों की आज्ञानुसार आषाढ़ के एक माह से दूसरे माह व्रत रखकर शिवजी का पूजन किया। जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने पार्वती के साथ विवाह कर लिया। अतः यह व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए श्रेष्ठ पति प्राप्त करने वाला माना जाने लगा।

ஶ்ரீ லம்போ³த³ர ஸ்தோத்ரம் (க்ரோதா⁴ஸுர க்ருதம்)

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